________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
८४
www. kobatirth.org
जयन्त
[ अंक ३
( अंग्रेजी बाजोंके साथ साथ राजा, रानी, धूर्जटि, कमला,
नय, विनय और नौकर चाकर प्रवेश करते हैं । ) रा० - क्यों जयन्त ? अब कैसी तबियत है ?
--
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हवा खाकर गिरगिटानके ऐसा फूल उठा हूँ । और प्यास लगने पर बीच बीचमें आपकी मीठी बातोंका रस भी पी लेता हूँ । शायद, इस तरह तो आप किसी कबूतरको भी नहीं पाल सकते ! रा०--- कैसा बेतुका जवाब देते हो ? वे मेरे शब्द नहीं थे । जयन्त — अब वे मेरे भी तो नहीं हैं । ( धूर्जटिसे ) क्यों महाशय ! आप कहते थे कि जब आप विद्यालय में पढ़ते थे तब आपने भी एक बार नाटकमें काम किया था । क्या यह सच बात है ? मैंने किया था नाटकमें काम और
;
धू० हाँ, महाराज
उस समय में अच्छे पात्रों में गिना जाता था ।
जयन्त आप क्या बने थे ?
धू० - महाराज ! मैं सर्वेजय बना था । बीच चौकमै क्रूरसिंहने मेरी हत्या की थी ।
--
जयन्त ―हः ! हः ! क्रूरसिंहने ऐसे मोटे ताज़े बछड़े की हत्या करके खूब क्रूरता दिखला दी । अच्छा; नाटकवाले अबतक तैय्यार हुए या नहीं ?
नय-वे बिल्कुल तैय्यार हैं । बस, अब खाली आपकी आज्ञा 'पानेकी देर है ।
रानी - प्यारे जयन्त ! आओ, तुम मेरे पास बैठो !
नहीं नहीं; मैं यहीं अच्छा हूँ । देखिये, यहां एक कैसी मनोहर चिड़िया है !
For Private And Personal Use Only