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जयन्तः
[ अंक ३
विन० - महाराज ! यह शिष्टाचार करनेका समय नहीं है। अगर आप कृपा करके ठीक ठीक जवाब दें तो मैं महारानी साहबका सन्देसा आपको सुना दूँ; नहीं तो आज्ञा दीजिये, मैं यहीं से लौट जाता हूं । समझ लूँगा, मेरा काम हो गया ।
जयन्त - जाइये; मैं नहीं दे सकता ।
विन ---- -क्या ?
जयन्त — ठीक जवाब | मेरा मस्तिष्क बिगड़ गया है। अच्छा कहिये, आप क्या कहते हैं ? आप कहते थे कि मेरी माने मुझे एक सन्देसा कहलाया है। हाँ हाँ, कह डालिये उनकी क्या आज्ञा है विन० - महाराज ! उन्होंने कहा है कि आपकी हरकतें देखकर मैं चकित हो गई हूँ |
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जयन्त - हाय, हाय ! रे अद्भुत पुत्र ! तूने अपनी माको चकित कर डाला । बस, यही कहना था ? उनके चकित होनेका और कोई कारण नहीं है ? हो तो कह डालिये, छिपाते क्यों हैं ?
नय - महाराज ! जब आप सोने लगेंगे तब एक बार उनके महलमें जाकर उनसे मिल लीजिये; वे आपसे कुछ बातें किया चाहती हैं । जयन्त - अच्छा, कह दीजिये, मैं ज़रूर मिलूँगा | बस, हो चुका आपका काम ? या और भी कुछ कहना है ?
नय - महाराज ! आप मुझे पहिले बहुत प्यार करते थे । जयन्त - वैसा अब भी करता हूँ। और इसके लिये मैं कसम भी खा सकता हूँ ।
नय - तो फिर, महाराज, अपनी तबियतका सच्चा सच्चा हाल मुझे बतला दीजिये । अगर आप अपने मित्रसे अपना दुःख न कहेंगे तो
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