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जयन्त
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ये सात सुरोंके सात छेद हैं ।
विन० ० -- पर मैं इसे बजाना जानता ही नहीं । मैंने यह इल्म ही नहीं सीखा |
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जयन्त - तुम भी मुझे बड़ा सीधा आदमी समझते हो; क्यों ? इस बाजेसे भी बेजान ! बातों बातों में मेरे दिलकी थाह निकाल लेना चाहते हो | कौन बात छेड़ने से मैं क्या कहूँगा यह तुम जानते हो ! मेरे दिल में क्या है उसे तुम बाहर निकाल सकते हो । मेरे सब सुर तुम जानते हो; एक एक पुर्जेको पहिचानते हो; पर इस जरासे बाजेको नहीं बन सकते । इसमें कैसे कैसे ध्वनि और सुर हैं ! इसमेंसे आवाज़ निकालना तुमसे नहीं बन पड़ता । क्या तुम यह समझते हो कि मेरे दिलका पता लगाना और मुझे बातोंमें बहकाना इस बाजेसे सुर निकालने से भी सहज है ? मुझे तुम चाहे जो बाजा या यन्त्र समझ लो - मुझे उससे क्या ? तुम्हार बहकाने से मैं बहकनेवाला नहीं हूँ ।
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[ अंक ३
( धूर्जटि प्रवेश करता है | ) जयन्त—–आइये, महाशय ! क्यौं, क्या खबर है ?
धू० - महाराज ! रानीसाहब आपसे कुछ बातें किया चाहती हैं; इसलिये उन्होंने आपको अभी बुलाया है ।
जयन्त — क्या वह मेघ आपको दिखाई देता है जो ठीक ऊँटकी शकला है ?
धू०- ( ऊपर देख कर ) जी हाँ, सचमुच, ठीक ऊँटकी शकल है । जयन्त - मुझे तो नेवलेकी शकलका देख पड़ता है । धू० - हाँ, महाराज । है सही नेवलेके ऐसा ।
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