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दृश्य ३ ]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
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करने के लिये हमें अपना सारा भेद खोल देना पड़ता है । तो फिर क्या करूं ? अब कौनसा उपाय है ? पश्चात्ताप करूँ ? हाँ, ठीक है; अब पश्चात्ताप ही करना चाहिये । क्योंकि वह क्या नहीं कर सकता १ पर जिसे पश्चात्ताप होता ही नहीं उसके लिये वह क्या कर सकता है ? हाय हाय ! यह कैसी दुर्दशा ! हृदय ! सचमुच, तू मृत्युके ऐसा कठोर बन गया है ! रो नीचात्मा ! तू मुक्त होनेके लिये इतना धक्कमधक्का कर रही है, पर पाप- पाशमें ही फँसी जाती है ! दे देवदूतो ! दया करो, मुझपर दया करो ! अड़ियल घुटनो ! ज़रा झुक जाओ । हृदय और नाड़ियो ! एकदम पत्थर जैसे कठोर न बनो बच्चोंकी नसोंकी तरह कोमल बनकर साष्टांग प्रणिपात करो ! इससे सब काम बन जायगा । ( झुककर प्रार्थना करता है | )
( जयन्त प्रवेश करता है | )
जयन्त - बस, अब मेरे कामके लिये इससे बढ़कर अच्छा मौका और कौन मिलेगा ? यह परमेश्वरकी प्रार्थना कर रहा है; इसी समय इसका खून कर डालना अच्छा होगा; जिसमें वह सीधे स्वर्ग में ही चला जाय । पर क्या ऐसा करने से मेरा बदला चुक जायगा ? नहीं; इस बातको पहिले अच्छी तरह सोच लेना चाहिये । इस नरपिशाचने मेरे पिताका खून किया है; इसलिये उस खूनके बदले में, मैं अपने पिताका एक ही पुत्र होकर, इस नीचाधमको स्वर्ग में भेज दूं ? हा ! यह तो उस खूनका बदला नहीं - पारितोषिक कहलावेगा । इम हत्यारेने ऐन जवानी में उनका एकाएक खून कर डाला - उन्हें अपने पापोंका प्रायश्चित्त करने का भी अवसर न दिया ! इस बातको सिवा उस परमात्मा और कौन जान सकता है ! पर मेरी समझ में उनके
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