________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२४
जयन्त
[ अंक ४
पलंग है ! हा: ! जिस जमीनके लिये ये लोग कट मरेंगे वह जमीन इनकी कब्रोंके लिये भी काफी नहीं है । ठीक है; बस, अब आजसे बदला चुकानेका विचार छोड और कोई विचार न करूंगा।
(जाता है।)
पाँचवाँ दृश्य । स्थान-राजभवनका एक कमरा ।
रानी, विशालाक्ष और एक भद्रपुरुष प्रवेश करते हैं। रानी-मैं उससे न बोलंगी।
भ.पु०-वह बिल्कुल पागल हो गई-उसे कुछ भी होश नहीं है । उसकी दशा देख बडा दुःख होता है।
रानी-उसे क्या हुआ है ?
भ.पु०-वह अपने पिताके विषयमें कुछ बकती है; और कहती कि संसारमें जो विचित्र बातें हो रही हैं उन सबका मुझे पता लगा है। आह भरती है, छाती पीटती है और राहमें पड़े घास पातको तुच्छ समझकर कुचलती है। उसकी बातोंका पूरा पूरा मतलब समझमें नहीं आता तो भी सुननेवाले उसका मनमाना मतलब लगा लेते हैं । उसका घबराया हुआ चेहरा, विचित्र चाल और भाव देख लोगोंको अपनी २ कल्पना सच मालूम होती है । सारांश, उसकी दीन दशासे और तो कुछ भी ठीक पता नहीं लगता, पर यह साफ मालूम होता है कि उसके हृदयमें कोई भयंकर चोट अवश्य पहुंची है।
विशा.-रानी साहब ! अगर आप उससे बोलती तो अच्छा
For Private And Personal Use Only