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जयन्त
[अंक ४ और अपना काम करता है । पर यह भी संभव है कि वह तीर हमारे पास न पहुँचकर राहमें-हवामें ही-ठंडा पड़ जाय और हम लोग बच जाय । चलो, अब चलें, मेरा मन बेचैन है। (जाते हैं।)
दूसरा दृश्य। स्थान-राजभवनका दूसरा कमरा ।
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जयन्त प्रवेश करता है। जयन्त-मुकी व्यवस्था तो हो चुकी । नय, विनय-( भीतरसे ) महाराज ! जयन्तकुमार !
जयन्त-(दबी आवाजमें ) ऐं ? कौन पुकारता है ? (ज़ोरसे) कौन है ? मुझे कौन पुकारता है ? अच्छा, ये लोग हैं ।
(नय और विनय प्रवेश करते हैं।) नय-महाराज ! वह लाश क्या हुई ? जयन्त-मिट्टीकी थी, मिट्टीमें मिल गई।
नय-महाराज ! वह कहाँ है, बतला दीजिये, जिसमें हमलोग उसे स्मशानमें ले जाय ।
जयन्त-तुम्हें विश्वास है ? नय-किस बातका ?
जयन्त-अपनी बात छोड़ तुम्हारा कहना मान लँगा, इस बातका । और, जाओजी, तुम्हारे जैसे पोतनोंकी बातोंका राजकुमार उत्तर नहीं देता।
नय-महाराज ! मुझे आप पोतना कहते हैं ?
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