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दृश्य ३ ]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
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वैसे
जयन्त - फिर क्या कहूँ ? जैसे चूल्हेका पोतना पानी सोखता है तुम लोग भी राजाकी खुशामद करके उनसे इनाम और बड़ी बड़ी अफसरी लेने में बडे उस्ताद हो । पर ऐसे अफसर अन्तमें राजाके बड़े काम आते हैं । जैसे बन्दर किसी चीजको एक दम मुँह में भर लेता ī है और भूख लगनेपर उसे पेटके हवाले करता है वैसे ही राजा तुम लोगोंको पहिले अपनाये रहते हैं और जरूरत पड़ने पर चूस लेते हैं । सीलिये कहता हूं कि, पोतनो ! तुम लोग पहिले जैसे अन्त में भी सूखे बने रहोगे ।
नय - महाराज ! मैं आपका मतलब नहीं समझा । जयन्त--अच्छी बात है । मूर्ख लोग युक्तिवादको क्या समझें ? नय - - महाराज ! लाश कहाँ है, यह बतला दीजिये; और हमारे थ महाराजके पास चलिये ।
जयन्त --- राजा लाश हो जाता है; पर लाश राजा नहीं होती । जा एक चीज़ है
विन० - ' चीज़ ' ?
जयन्त - या कहो, कुछ भी नहीं है। अच्छा, मुझे ले चलो । सारा आँख मुँदौवलका खेल है ।
तीसरा दृश्य ।
स्थान -- राजभवनका एक दूसरा कमरा !
राजा और सेवक प्रवेश करते हैं ।
राजा -- जयन्तका और धूर्जटिकी लाशका पता लगाने के लिये
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