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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ३ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । ११७ वैसे जयन्त - फिर क्या कहूँ ? जैसे चूल्हेका पोतना पानी सोखता है तुम लोग भी राजाकी खुशामद करके उनसे इनाम और बड़ी बड़ी अफसरी लेने में बडे उस्ताद हो । पर ऐसे अफसर अन्तमें राजाके बड़े काम आते हैं । जैसे बन्दर किसी चीजको एक दम मुँह में भर लेता ī है और भूख लगनेपर उसे पेटके हवाले करता है वैसे ही राजा तुम लोगोंको पहिले अपनाये रहते हैं और जरूरत पड़ने पर चूस लेते हैं । सीलिये कहता हूं कि, पोतनो ! तुम लोग पहिले जैसे अन्त में भी सूखे बने रहोगे । नय - महाराज ! मैं आपका मतलब नहीं समझा । जयन्त--अच्छी बात है । मूर्ख लोग युक्तिवादको क्या समझें ? नय - - महाराज ! लाश कहाँ है, यह बतला दीजिये; और हमारे थ महाराजके पास चलिये । जयन्त --- राजा लाश हो जाता है; पर लाश राजा नहीं होती । जा एक चीज़ है विन० - ' चीज़ ' ? जयन्त - या कहो, कुछ भी नहीं है। अच्छा, मुझे ले चलो । सारा आँख मुँदौवलका खेल है । तीसरा दृश्य । स्थान -- राजभवनका एक दूसरा कमरा ! राजा और सेवक प्रवेश करते हैं । राजा -- जयन्तका और धूर्जटिकी लाशका पता लगाने के लिये For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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