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दृश्य ४] बलभद्रदेशका राजकुमार। १०९ खुली और मैं अपना पाप देख रही हूं । अब मत बोल; मेरा शरीर अन्दरसे जल उठा है। मैंने जो पाप किया है उसका दाग कैसे साफ करूं? नहीं ; उसको नहीं धो सकती ! हाय ! मैं कैसी नीच पापीन हूं !
जयन्त-दगाबाज, खूनी और लूटेरा ! बेरहम, हरामी, चांडाल ! तेरे पहिले पतिकी योग्यताका बीसवां हिस्सा भी इस नीचमें नहीं है ! राजकलंक । कुलकलंक ! राज और अधिकार चुरानेवाले कायर डाक ! इस हरामीने मेरे पितमका स्नजडीत मुकुट अपने शिरपर बेखटके रख लिया !
रानी-जाने दो; अब कुछ न कहो । जयन्त यह राजा बना है ! चिथरों और धजियोंका राजा है !
(भूतका प्रवेश) हे आकाशस्थ गंधर्वकिन्नरो! इस अनाथ बालकपर कृपा करो ! यह दर्शनीय रूप धारणकर इस समय तू यहां किस लिये आया है !
रानी-हरे ईश्वर ! यह पागल हो गया !
जयन्त-क्या तू यह कहनेके लिये आया है कि समय बीत चला और अभीतक तेरी कठोर आशाका पालन नहीं हुआ ? बोल, मेरा सन्देह दूर कर।
भूत-मैंने जो तुझसे कहा है वह मत भूलना । इधर वह बात तेरे ख्वालमें हो शायद न रही इसलिये ताकीद देने आया ! पर देख, उधर देख, तेरी माका क्या हाल हो गया ! जा, उसे समझा बुझा कर राहपर से आ । कमजोर दिलको कल्पना बहुत जल्द बहकाली है। जा, उससे बोल ।
जयन्त-माताजी, कहिये, आपका क्या हाल है !
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