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बलभद्रदेशका राजकुमार । मातें करिये । उससे यह कहिये कि ' देखो जी , अब तुम्हारा पागलपन बहुत हुआ अब उसे कोई नहीं सह सकता इसका प्रायश्चित्त तुम्हें आजतक मिल जाता, पर मैं थी, इससे तुम आजतक बचे रहे । ' मैं यहीं परदेकी आड़में छिपा रहता हूँ; उससे खूब हिलंमिलकर उसके मनकी बात समझ लीजिये।
जयन्त-( भीतरसे) मा ! मा !
रानी..जाइये जाइये, वह आ गया । आप चिन्ता न कीजिये; भरसक मैं कोई बात उठा न रखेंगी। (धूर्जटि परदेकी आड़में छिप जाता है ।)
जयन्त प्रवेश करता है। अयन्त-मा ! क्या बात है ? मुझे किस लिये बुलाया है ? रानी-जयन्त ! तूने अपने पिताका भारी अपराध किया है। जयन्त-मम ! तूने मेरे पिताका बड़ा भारी अपराध किया है। रानी- खबरदार, ऐसी बेतुकी बातें न कर । जयन्त- खबरदार, तू भी ऐसी नीचताकी बातें न कर । रानी-जयन्त ! आजकल तेरी क्या हालत है ? जयन्त-मा ! मैंने क्या किया ? रानी-क्या तू मुझे भूल गया ?..
जयन्त नहीं नहीं;-भला मैं आपको भूल सकता हूँ! आपरानी हैं, अपने पतिके सगे भाईकी पत्नी हैं, और-हाय !-आप मेरी मा हैं।
रानी-क्या तू मुझसे सीधी तरहसे. न बोलेगा ? अच्छा अब मैं उन्हींको तेरे पास भेज देती हूँ जिनसे तू मखमारके सीधी सीधी बातें करेगा।
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