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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलभद्रदेशका राजकुमार । मातें करिये । उससे यह कहिये कि ' देखो जी , अब तुम्हारा पागलपन बहुत हुआ अब उसे कोई नहीं सह सकता इसका प्रायश्चित्त तुम्हें आजतक मिल जाता, पर मैं थी, इससे तुम आजतक बचे रहे । ' मैं यहीं परदेकी आड़में छिपा रहता हूँ; उससे खूब हिलंमिलकर उसके मनकी बात समझ लीजिये। जयन्त-( भीतरसे) मा ! मा ! रानी..जाइये जाइये, वह आ गया । आप चिन्ता न कीजिये; भरसक मैं कोई बात उठा न रखेंगी। (धूर्जटि परदेकी आड़में छिप जाता है ।) जयन्त प्रवेश करता है। अयन्त-मा ! क्या बात है ? मुझे किस लिये बुलाया है ? रानी-जयन्त ! तूने अपने पिताका भारी अपराध किया है। जयन्त-मम ! तूने मेरे पिताका बड़ा भारी अपराध किया है। रानी- खबरदार, ऐसी बेतुकी बातें न कर । जयन्त- खबरदार, तू भी ऐसी नीचताकी बातें न कर । रानी-जयन्त ! आजकल तेरी क्या हालत है ? जयन्त-मा ! मैंने क्या किया ? रानी-क्या तू मुझे भूल गया ?.. जयन्त नहीं नहीं;-भला मैं आपको भूल सकता हूँ! आपरानी हैं, अपने पतिके सगे भाईकी पत्नी हैं, और-हाय !-आप मेरी मा हैं। रानी-क्या तू मुझसे सीधी तरहसे. न बोलेगा ? अच्छा अब मैं उन्हींको तेरे पास भेज देती हूँ जिनसे तू मखमारके सीधी सीधी बातें करेगा। For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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