SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ जयस्त [ अंक ३ मस्ते समय उनपर पापफेंका बोझ बना ही रहा होगा ! फिर क्या अभी - इसीसमय, जब कि वह अपने लिये स्वर्ग जानेका रास्ता साफ़ कर रहा है----उसका खून कर डालूं ? इससे मेरे प्यारे पिता के खूनका बदला - चुक जायगा ? नहीं, नहीं; इससे बदला नहीं चुकेगा । जल्दी करनेसे सारा काम बिगड़ जायगा । रे खड्ग ! खबरदार, म्यानके अन्दर हो जा ! रे आतुर हाथ ! चल हट पीछे और इससे भी अच्छा मौका खोज ! जब वह शराब पीकर सोया हो या उसके नशे में चूर हो, या पशुके सम्मान अपने भाईकी स्त्रीसे व्यभिचार करने में मगन हो; जुवा खेलता हो, झूठी सौगन्द खाता हो या ऐसा ही कोई और बुरा काम करता हो जिससे वह मुक्ति न पा सके उस समय तू ऐसा प्रताप दिखा कि वह सीधे नरकके सिवा और कहीं न जा सके। हं, ( ज़रा सोचकर ) मा मेरी राह देखती होगी । इन प्रार्थनाभते अपने विपद्मस्त जीवन के दिन यह और भी बढ़ा रहा है। ( जाता है । ) रा०- ( उठकर ) मेरे शब्द तो ऊपर जा नीचे ही बने हुए हैं। क्या विचार रहित शब्द सकते हैं ? नहीं, कभी नहीं । रहे हैं; पर विचार भी स्वर्गतक पहुंच ( जाता है । ) चौथा दृश्य । स्थान - रानीका महल | -:: रानी और धूर्जटि प्रवेश करते हैं। धू • • वह सीधा यहीं आवेगा । देखिये, उससे खूब सावधानी से For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy