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दृश्य २] बलमद्रदेशका राजकुमार ।
जयन्त-नहीं, जनाब ! देखिये, व्हेलके ऐसा है । धू०-हाँ, ठोक ठोक; बिल्कुल व्हेलकी शकल है ।
जयन्त-अच्छा, जाइये; मासे कह दीजिय कि फुर्सत होनेपर मिल लूँगा । ( स्वगत ) ये लोग बड़े धूर्त होते हैं; जिधर झुकाइये उधर झुक जाते हैं-इनका मतलब पूरा होना चाहिये । अच्छा, आप चलिये और कह दीजिये, मैं आता हूँ।
धू०-बहुत अच्छा; ऐसा हो कह दूंगा । जयन्त-हा, आप क्यों नहीं कहेंगे ? ( धूर्जटि जाता है । ) मित्रो ! अब तुम लोग भी जाओ । ( जयन्तके सिवा और सब जाते हैं । )
अहा ! रातका समयभी कैसा भयानक होता है ! इसी समय जादूगरनी जादू करती हैं; और टोनहिन टोना मारती हैं ! इसी समय कबके मुँह खुल जाते हैं; और उनमें गड़े हुए प्रेत बाहर निकलकर पृथ्वीपर भ्रमण करते हैं ! इसी समय नरकका द्वार खुल जाता है, और उसमें से महामारी जैसे अनेक भयङ्कर संक्रामक रोग निकलकर पृथ्वीके असंख्य जीवोंकी हत्या करते हैं ! तो क्या मैं भी इसी समय उस नरपिशाचकी हत्याकर उसके कलेजेका गरम गरम खन न पी सकंगा ? यदि इसी समय जीवमात्रके अन्तःकरणको एकबार थर्रा दने वाला यह कठोर काम मेरे हाथों हो जाता तो फिर पूछना ही क्या था ! पर, हां, मुझे अभी अपनी मासे मिलना है । हृदय ! अपना स्वभाव एक दम भूल न जा; और अपने ऊपर इन राक्षसी विचारोंका असर न पड़ने दे ! कठोर यन; पर मनुष्य-स्वभावके विरुद्ध कोई काम न कर ! उसके कले
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