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बलभद्रदेशका राजकुमार ।
दृश्य २ ]
वह दुःख दूर कैसे हो ?
जयन्त - भाई ! मैं अपनी तरक्की चाहता हूँ । समझ गये ? नय - महाराज ! आपके चाचाजीने तो आपको अपने बाद राजगद्दीका वारिस कबूल किया है; फिर आप यह कैसी बात कहते हैं ? जयन्त - हाँ, ठीक है; 'जब बाबा मरेंगे तब बैल बटेंगे' । क्यों, यही बात न ?
( बाजा लेकर नट फिर प्रवेश करते हैं । )
अ: हा ! आइये, आइये । अच्छा ज़रा देखूँ तो सही आपका बाजा । ( विनयसे ) क्यौंजी विनय ! तुम मुझे उल्टे सीधे सवाल करके मेरे पेटकी थाह लेना चाहते हो ? अच्छी बात है ।
विन० - महाराज ! न जाने क्यों आपके विषयमें मेरे मन में कुछ विलक्षण प्रेम है; इसी लिये मैं आपको आपकी तबियतका हाल पूछा करता हूँ । जयन्त - न जाने क्या बकते हो मेरी समझमें तो कुछ भी नहीं आता । खैर, यह बाजा बजाओगे ?
विन० - नहीं, महाराज ! मैं नहीं बजा सकता ।
जयन्त - अच्छा, मैं कहता हूँ; इसीलिये बजाओ । विन०- नहीं, महाराज ! विश्वास रखिये, मैं बिल्कुल नहीं जानता । - अच्छा, लो हाथ जोड़ता हूँ; अबतो बजाओगे ? विन० ० - महाराज ! सचमुच, मैं कुछ भी नहीं जानता ।
जयन्त
जयन्त - अजी, इसमें ऐसी कौनसी बात है जो तुम नहीं बजा सकते । यह उतना ही सहज है जितना बैठे बैठे टांग पसारकर सो जाना । देखो, ये अंगुलियां इन छेदोंपर रखकर मुँइसे इस तरह फूँक दो । सुना ! कैसा मीठा सुर है ! बस, इसी तरह बजाओ ।
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