SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ९६ जयन्तः [ अंक ३ विन० - महाराज ! यह शिष्टाचार करनेका समय नहीं है। अगर आप कृपा करके ठीक ठीक जवाब दें तो मैं महारानी साहबका सन्देसा आपको सुना दूँ; नहीं तो आज्ञा दीजिये, मैं यहीं से लौट जाता हूं । समझ लूँगा, मेरा काम हो गया । जयन्त - जाइये; मैं नहीं दे सकता । विन ---- -क्या ? जयन्त — ठीक जवाब | मेरा मस्तिष्क बिगड़ गया है। अच्छा कहिये, आप क्या कहते हैं ? आप कहते थे कि मेरी माने मुझे एक सन्देसा कहलाया है। हाँ हाँ, कह डालिये उनकी क्या आज्ञा है विन० - महाराज ! उन्होंने कहा है कि आपकी हरकतें देखकर मैं चकित हो गई हूँ | 1 .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.com जयन्त - हाय, हाय ! रे अद्भुत पुत्र ! तूने अपनी माको चकित कर डाला । बस, यही कहना था ? उनके चकित होनेका और कोई कारण नहीं है ? हो तो कह डालिये, छिपाते क्यों हैं ? नय - महाराज ! जब आप सोने लगेंगे तब एक बार उनके महलमें जाकर उनसे मिल लीजिये; वे आपसे कुछ बातें किया चाहती हैं । जयन्त - अच्छा, कह दीजिये, मैं ज़रूर मिलूँगा | बस, हो चुका आपका काम ? या और भी कुछ कहना है ? नय - महाराज ! आप मुझे पहिले बहुत प्यार करते थे । जयन्त - वैसा अब भी करता हूँ। और इसके लिये मैं कसम भी खा सकता हूँ । नय - तो फिर, महाराज, अपनी तबियतका सच्चा सच्चा हाल मुझे बतला दीजिये । अगर आप अपने मित्रसे अपना दुःख न कहेंगे तो For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy