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जयन्त
[ अंक ३ जयन्त--इसका नाम है, 'मूसदान' । क्यों ? कैसा विचित्र नाम है ? ऐसे नामको अलंकारिक नाम कहते हैं । अन्धेर नगरीमें राजाकी जो हत्या हुई थी उसीकी यह नकल है । राजाका नाम है मातंग, और रानीका सुरादेवी । अब आप स्वयं ही बहुत जल्द देख लेंगे । यह खेल हृदयपर बहुत असर करता है ! पर हमें क्या ? आपका और मेरा हृदय अगर साफ है तो हमपर इसका कुछ भी असर नहीं पड़ सकता । 'जो करेगा सो भुगतेगा; और जिसे कर नहीं उसे डर क्या ?'
( दुष्टबुद्धि प्रवेश करता है । ) इसका नाम है, दुष्टबुद्धि; यह राजाका भतीजा है ।
कमला-महाराज ! आप तो मानों इस नाटकके सूत्रधार हो बने हैं।
जयन्त-हः हः; जनाब ! अगर आपको और आपके प्रियतमको रङ्गीली रसीली बातें सुनें तो आपका भी सारा भेद खोल सकता हूँ।
कमला-हाँ, क्यों नहीं ? कुछ झूठ सच, भला बुरा ।
जयन्त-हाँ हाँ, आपको तो अपने पतिके भले बुरे सब कामोंमे साथ देना चाहिये । खैर, चलरे हत्यारे ! जल्दी कर; अब अधिक नखरे न कर । जल्दीसे अपना काम निपटा दे !
दुष्टबुद्धि-अहा ! मेरे कामके लिये यह क्या ही अच्छा अवसर है ! मस्तिष्क नीच विचारों से भरा है। हाय फुरफुरा रहे हैं । विष तैयार है ! और यहाँ इस समय एकान्त भी है ! तात्पर्य, किसी बातकी कमी नहीं-सब ठीक है । (शीशी आगे बढ़ाकर ) अहा ! यह बचनाग जैसी प्राणघातक जड़ीके रस और सोमलके सत्वका मिश्रण है।
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