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दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार। पर मेरी राय यह है कि आजका नाटक हो जानेपर महारानी साहब अकेलेमें उससे मिलें और उसके दु:खका कारण जान लेनेकी चेष्टा करें। प्यारकी मीठी मीठी बातें करके उसके पेटकी थाह ले लें; और महाराजकी आज्ञा होगी तो मैं भी छिपे छिपे उनकी बातें सुन लँगा। ऐसा करनेसे अगर कोई सफ़लता न हुई तो फिर आप चाहें उसे श्वेतद्वीप भेज दें या यहीं किसी कैदखानेमें बन्द कर दें।
रा०-खैर, यही सही ; बड़ोंके पागलपनकी ओर दुर्लक्ष्य करना बिल्कुल अच्छा नहीं । ( दोनों जाते हैं।)
दूसरा दृश्य। स्थान-राजभवनका एक बड़ा कमरा ।
जयन्त और नट प्रवेश करते हैं। जयन्त-जैसा मैंने बताया है, ठीक वैसा ही बोलना। नहीं तो और और नटोंकी तरह मन माना चिल्लाने लगोगे । अगर चिल्लाकर बोलना मुझे पसन्द होता तो मैं अपना भाषण तुमसे न कहलाकर किसी मुनादियेसे कहलाता। दूसरे यह कि, बोलते समय लगोगे पटेबाजीके हाथ दिखलाने, ऐसा करना भी मुझे पसन्द नहीं। जहां जैसा भाव हो वहां ठीक वैसा ही आभिनय करना चाहिये; क्योंकि बोलते समय मनोविकार बहुत प्रबल हो जानेपर उनके दबानेकी चष्टा करनी चाहिये । ऐसा करनेसे श्रोताओंपर उस भाषणका अधिक प्रभाव पड़मा । अगर नाटकका कोई पात्र कर्कश स्वरसे चिल्लाने लगता है तो मेरा सारा शरीर एकदम जल उठता है । ऐसी मूर्खता करनसे
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