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दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार।
७७ पोतती हो । बस तो फिर, बनो जोगिन और चला दो किसी मठमें । अः, क्यौं व्यर्थ देर करती हो ? जाओ, अभी जाओ।
कमला-हे परमेश्वर ! हे जगपिता ! हे ब्रह्माण्डनायक ! इस राजकुमारपर दया कर ! दया कर!! और इसकी बुद्धि ठिकाने कर दे ।
जयन्त-सुना है कि चित्रकलामें आप बड़ी कुशल हैं । विधाताने आपको एक चेहरा दिया है, तो भी आप अपने लिये अपना दुसरा चेहरा तैय्यार करती हैं । तुम-स्त्रियाँ-गाती हो; नाचती हो; कमर लचकाती चलती हो; दूसरोंको जो चाहो भला बुरा कह देती हो; और अपने नीच कामोंपर भोली भोली और मीठी मीठी बातोंका पर्दा डालती हो । पर, जानेदो; मुझे इन सब बातोसे क्या करना है ? इन बातोंसे मेरा सिर और भी दर्द करने लगता है । खैर, मेरी यह राय है कि हम लोग बिवाहके झगड़ेमें ही न पड़ें । जिन लोगोंने विवाह कर लिया है उनमेंसे एक स्त्री-पुरुषको छोड़कर बाकी सबको विवाहका सुख लूटने दो; पर अबतक जो कुँवारे ही बने हुए हैं उन्हें ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिये । अच्छा; अब तुम जाओ और एकदम मठकीराह पकड़ो। ( जयन्त जाता है । )
कमला-हाः ! इस उदार आत्माकी यह दुदर्शा !! दर्बारियोंकी सो इसकी दृष्टि ! विद्वानोंकीसी इसकी वाणी ! वीरोंकासा इसका कलेजा ! इस सुन्दर राज्यका एक मात्र आशा-वृक्ष और अमुल्य रत्न ! आचार और व्यवहारका अनुकरण करने योग्य एक मात्र उदाहरण स्वरूप,- और सबका मन आकर्षित करने वाला लोहचुम्बफ ! हाय, हाय ! गया ! हायसे निकल गया !! और मैं ! छि:; मुझ जैसी दुःखिया और अभागिन स्त्री सारे संसारमें न होगी । हाय, हाय ! जिस उदार
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