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जयन्त- .. [ अंक ३ अयन्त-अब आप जोगिन बनकर किसी मठमें चल दें; क्यों व्यर्थ पाक्यिोंकी मा बनना चाहती हैं ? साधारणत: मैं इमान्दार हूँ; पर मुझमें भी ऐसे दुर्गुण भरे हैं कि मेरी मा मुझे जन्म न देती तो ही अच्छा था। मैं बड़ा घमण्डी और दीर्घ द्वेषी हूँ । मेरी अभिलाषाएं भी बहुत बढ़ी चढ़ी हैं । दूसरोंको सतानेके विचार मेरे मस्तिष्कमें एक पर एक आया ही करते हैं । 'पहिले इसे करूँ या उसे ' ऐसी चित्तकी चंचलतासे मेरी विचित्र दशा हो जाती है। मेरे जैसे निकम्मे मनुष्य जन्म लेकर पृथ्वीका बोझ बढ़ानेके सिवा और कर ही क्या सकते हैं ? हम सब बड़े दुष्ट, छली, कपटी और पूरे घमण्डी हैं। इसी लिये कहता हूँ कि हममेंसे किसीपर भी तुम विश्वास न करो । जाओ, जोगन बनकर किसी मठकी राह पकड़ो । हां, आपके पिता कहाँ हैं ?
कमला-घर है: महाराज।
जयन्त-तो फिर जल्दी जाइये और उन्हें किसा कोठरीमें बन्द कर दीजिये । उनकी बुद्धिका प्रकाश बाहर न आने पावे-घरमें ही रहे । अच्छा; अब आप जाइये ।
कमला-हे इश्वर ! ईनपर दया कर !
जयन्त-अगर तुम्हें विवाह करना हो तो मैं तुम्हें एक आशीर्वाद दिये देता हूँ। तुम्हारा चरित्र गङ्गाजलके समान निर्मल और पवित्र होने पर भी लोग सदा तुम्हारी निन्दा ही किया करेंगे । इस लिये कहता हूँ कि तुम जोगिन बनकर किसी मठमें चल दो । जाओ, जल्दी जाओ। और अगर बिना विवाह किये तुमसे न रहा जाता हो तो किसी जड़ बुद्धिवाले पुरुषस विवाह कर लो; क्योंकि बुद्धिमान् पुरुष भली भांति जानते हैं कि तुम लोग उनके मुँहमें किस तरह कालिख
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