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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयन्त- .. [ अंक ३ अयन्त-अब आप जोगिन बनकर किसी मठमें चल दें; क्यों व्यर्थ पाक्यिोंकी मा बनना चाहती हैं ? साधारणत: मैं इमान्दार हूँ; पर मुझमें भी ऐसे दुर्गुण भरे हैं कि मेरी मा मुझे जन्म न देती तो ही अच्छा था। मैं बड़ा घमण्डी और दीर्घ द्वेषी हूँ । मेरी अभिलाषाएं भी बहुत बढ़ी चढ़ी हैं । दूसरोंको सतानेके विचार मेरे मस्तिष्कमें एक पर एक आया ही करते हैं । 'पहिले इसे करूँ या उसे ' ऐसी चित्तकी चंचलतासे मेरी विचित्र दशा हो जाती है। मेरे जैसे निकम्मे मनुष्य जन्म लेकर पृथ्वीका बोझ बढ़ानेके सिवा और कर ही क्या सकते हैं ? हम सब बड़े दुष्ट, छली, कपटी और पूरे घमण्डी हैं। इसी लिये कहता हूँ कि हममेंसे किसीपर भी तुम विश्वास न करो । जाओ, जोगन बनकर किसी मठकी राह पकड़ो । हां, आपके पिता कहाँ हैं ? कमला-घर है: महाराज। जयन्त-तो फिर जल्दी जाइये और उन्हें किसा कोठरीमें बन्द कर दीजिये । उनकी बुद्धिका प्रकाश बाहर न आने पावे-घरमें ही रहे । अच्छा; अब आप जाइये । कमला-हे इश्वर ! ईनपर दया कर ! जयन्त-अगर तुम्हें विवाह करना हो तो मैं तुम्हें एक आशीर्वाद दिये देता हूँ। तुम्हारा चरित्र गङ्गाजलके समान निर्मल और पवित्र होने पर भी लोग सदा तुम्हारी निन्दा ही किया करेंगे । इस लिये कहता हूँ कि तुम जोगिन बनकर किसी मठमें चल दो । जाओ, जल्दी जाओ। और अगर बिना विवाह किये तुमसे न रहा जाता हो तो किसी जड़ बुद्धिवाले पुरुषस विवाह कर लो; क्योंकि बुद्धिमान् पुरुष भली भांति जानते हैं कि तुम लोग उनके मुँहमें किस तरह कालिख For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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