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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्व १] बलभद्रदेशका राजकुमार। ७५ पर अब इनका स्वाद जाता रहा । इसलिये मुझे अब इनकी ज़रूरत नहीं । कृपाकरके आप इन्हें लौटा लें । उदार मनुष्यको दी हुई वस्तुओंका देनेवाला जब निठुर हो जाता है तब वे वस्तुएं भी लेनेवालको भली नहीं मालूम होती-तुच्छ जान पड़ती हैं । लीजिये, अब इन्हें मैं अपने पास नहीं रखना चाहती। जयन्त-हां, हां, क्या आप सत्यव्रता हैं ? कमला-क्या ? जयन्त-आप सुन्दर हैं ? कमला-महाराज ! मैं आपका मतलब नहीं समझी । जयन्त-मैं यह कहता हूँ कि अगर आप सत्यव्रता और सुन्दर हों तो सत्यव्रतका सम्बन्ध अपनी सुन्दरतासे भूलकर भी न रक्खें । कमला-महाराज ! सुन्दरताको सत्यव्रतसे भी अच्छा और कौन साथी मिल सकता है ? जयन्त-सच है; क्योंकि सुन्दरतामें इतनी योग्यता है कि वह सत्यवतको एक चुटकीमें अपने जैसा नीच बना लेती है; पर सत्वव्रतमें इतनी योग्यता कहाँ, जो सुन्दरता को इतनी जल्दी अपने जैसा बना ले ? किसी समय यह बड़ी गूढ बात थी; पर अब तो इसकी सचाई सिद्ध हो चुकी है । हाँ, था, किसी समय आपपर मेरा प्रेम । - कमला-कमसे कम आपने मुझे ऐसाही विश्वास दिलाया था। जयन्त-आपने क्यों मेरी बातोंपर विश्वास किया ?—न करती विश्वास । मनुष्यों एकाध नया सद्गुण आजानेसे उसके सारे पुराने दुर्गण एक दम चळे नहीं जाते । जाइये, मैंने कभी आपपर प्रेम किया ही नहीं। कमला-फिर तो आपने मेरा विश्वास-पात किया । For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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