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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ जयन्त [मंक३ से हमारा साहस टूट जाता है; और यह विचार होता है कि जो कुछ दुःख हम यहां भुगत रहे हैं वे ही अच्छे; पर जिस जगहके बारमें हम बिलकुल अन्धे हैं उस जगह जाना नहीं अच्छा; क्योंकि वहां न जाने और कैसे कैसे दुःख उठाने पड़ेंगे । इन्हीं विचारोंसे हमारी हिम्मत टूट जाती है और हम डरपोक बन जाते हैं। ‘करें या न करें' ऐसे विचारोंसे हमारा संकल्प ढीला पड़ जाता है; और साहसके बड़े बड़े काम करनेके विचारोंका प्रवाह पीछे फिर जाता है । काम करना तो अलग रहा-हम उसकी यादतक भूल जाते हैं। पर ठहरो; यह कौन ? विमला कमला ! हे देवी! तेरे स्तवनसे मेरे सारे पाप जलकर भस्म हो जाय । कमला-महाराज ! इन दिनों आपकी तबियत कैसी है ! जयन्त-अहा ! आप हैं ! धन्य है मेरा भाग्य ! क्या भाप मेरी तबियतका हाल जानना चाहती हैं ? मेरी तबियत बहुत अच्छी है, बहुत खासी और बहुत दुरुस्त है। कमला-महाराज ! आपने अपने प्रेमका स्मरण-चिन्ह कहकर जो चीजें मुझे दी थीं उन्हें मैं बहुत दिनोंसे लौटा देना चाहती हूँ। आज अच्छा अवसर है; तो आपसे मेरी यही विनती है कि कृपाकरके अपनी चीजें आप लौटा लें। ' जयन्त--नहीं, नहीं, मैंने तो आपको कभी कुछ भी नहीं दिया। कमला-अगर आप अच्छी तरह याद करें तो याद आ नायगा. कि ये सब चीजें आपने ही मुझे दी थीं। और देते समय मापने जो मीठी मीठी बातें की थीं उनसे तो इनका मूल्य और भी बढ़ गया था For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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