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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३ दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार । चलिये, हम लोग कहीं छिप जायँ । ( राजा और धूर्जटि जाते हैं।) ( जयन्त प्रवेश करता है । ) जयन्त-जीना या मरना;-बस, यही एक प्रश्न है । भाम्यके भयङ्कर उपद्रवोंसे होनेवाली तकलीफ सहते हुए चुपचाप पड़े रहना अच्छा होगा ? या उनका एक दम नाश करनेके लिये जान हथेलीपर ले डंटकर सामना करना अच्छा होगा ? मरना; सोना;-एक ही बात है । पर, सोनेसे अगर मनुष्यके अन्त:करण और शरीरको तकलीफ देनेवाली असंख्य व्याधियोंका नाश हो सकता तो क्याही अच्छा होता! मरना-सोना-सोना; पर अगर कहीं इसमें स्वप्न देख पड़ें तो ? बस, यही एक संकट है। क्योंकि इस नाशवान् शरीरको छोड़कर उस महानिद्रामें न जाने कैसे कैसे स्वप्न दिखाई पड़ें ? इसी लिये उस महानिद्रामें सोनेका साहस नहीं होता, और इसी लिये हमें यह सांसारिक दुःख भुगतते हुए अपना सारा जीवन बिताना पड़ता हैनहीं तो इस निर्दय कालके कठोर दण्ड कौन सहता ? अन्याइयोंका अन्याय कौन सुनता ? घमण्डियोंसे अपना अपमान कौन कराता ? प्रेम-भंगका दुःख कौन उठाता,? देरसे होनेवाले न्यायकी राह कौन देखता ? कर्मचारियोंकी उद्दण्डता और असभ्यता कौन सहता ? सहनशील गुणी मनुष्य विचारहीन नरपशुकी जूतियाँ क्यों खाता ? इन सब विपदका नाश अगर एक छुरेसे हो सकता तो ये सब विपत्तियाँ कोई क्यों झेलता ? या यह सारा प्रपंचभार अपने सिर ले अपना दुःसह जीवन बित्तानेके लिये कोई क्यों हाय हाय करता ? पर किया क्या जाय ? एक बार यमलोककी. सीमापर पहुंचकर फिर कोई भी लौट नहीं आता। वहां न जाने उसकी कैसी दुर्दशा होती होगी ?--बस इसी बातके डर. For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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