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दृश्य २ ]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
६१
जयन्त - अरे भाई, मैं तो पागलसे भी पागल हूँ; पर जब मैं शिकार करने जाता हूँ तो शिकार पहिचानता हूँ । ( धूर्जटि प्रवेश करता है । )
धू० – सज्जनो ! सब कुशल तो है ?
जयन्त - सुनते हो जी, विनय ! और नय, तुम भी ! इस बुड्ढे बचेके बदनसे अभी बचपनके कपड़े नहीं उतरे ।
नय – सौभाग्यसे अगर फिर बच्चा बननेका अवसर आ गया है तो वे उन्हें क्यों उतारें ? क्योंकि बुद्धों का स्वभाव करीब करीब बच्चों के ऐसा ही हुआ करता है ।
जयन्त- - वह आया है, मुझे नाटकवालोंके आनेकी खबर देनेके लिये । ( धूर्जटिसे ) क्या आपका यही कहना है कि वे सोमवारको सबेरे आये ? ठीक ठीक, आपका कहना बहुत ठीक है ।
धू० - महाराज ! आपको एक खबर सुनानी है ।
जयन्त - महाराज ! आपको एक खबर सुनानी है । जब रोमक नगर में चित्रवर्ण नाटक करता था......
धू०- - महाराज ! नाटकवाले यहां आये हैं ।
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जयन्त - बिल्कुल झूठ, सरासर धोखेबाजी !
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धू० - नहीं, महाराज, आपके सिरकी सौगन्द खाके कहता हूं जयन्त — हाँ हाँ, मैं जानता हूं, आपको मेरे सिरकी कितनी भारी चिन्ता है ।
धू० - महाराज ! संसारमें यदि कोई नाटक कंपनी है तो बस, यही है । आप उससे चाहे जैसा नाटक करा लीजिये-योगान्त, वियोगान्त, ऐतिहासिक, सृष्टि - सम्बन्धी, सृष्टिसम्बन्धी - आनन्द - पर्यवसायी,
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