SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । ६१ जयन्त - अरे भाई, मैं तो पागलसे भी पागल हूँ; पर जब मैं शिकार करने जाता हूँ तो शिकार पहिचानता हूँ । ( धूर्जटि प्रवेश करता है । ) धू० – सज्जनो ! सब कुशल तो है ? जयन्त - सुनते हो जी, विनय ! और नय, तुम भी ! इस बुड्ढे बचेके बदनसे अभी बचपनके कपड़े नहीं उतरे । नय – सौभाग्यसे अगर फिर बच्चा बननेका अवसर आ गया है तो वे उन्हें क्यों उतारें ? क्योंकि बुद्धों का स्वभाव करीब करीब बच्चों के ऐसा ही हुआ करता है । जयन्त- - वह आया है, मुझे नाटकवालोंके आनेकी खबर देनेके लिये । ( धूर्जटिसे ) क्या आपका यही कहना है कि वे सोमवारको सबेरे आये ? ठीक ठीक, आपका कहना बहुत ठीक है । धू० - महाराज ! आपको एक खबर सुनानी है । जयन्त - महाराज ! आपको एक खबर सुनानी है । जब रोमक नगर में चित्रवर्ण नाटक करता था...... धू०- - महाराज ! नाटकवाले यहां आये हैं । ·--- जयन्त - बिल्कुल झूठ, सरासर धोखेबाजी ! -- 1 धू० - नहीं, महाराज, आपके सिरकी सौगन्द खाके कहता हूं जयन्त — हाँ हाँ, मैं जानता हूं, आपको मेरे सिरकी कितनी भारी चिन्ता है । धू० - महाराज ! संसारमें यदि कोई नाटक कंपनी है तो बस, यही है । आप उससे चाहे जैसा नाटक करा लीजिये-योगान्त, वियोगान्त, ऐतिहासिक, सृष्टि - सम्बन्धी, सृष्टिसम्बन्धी - आनन्द - पर्यवसायी, For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy