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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० जयन्त [ अंक २ ---- नय - इसके लिये छोटे बड़े दोनों नट दोषी हैं । कई दिन इस प्रश्नकी मीमांसा होती रही । यहांतक कि एक बार नाटकवालों में दो दल बन गए ; और वे एक दूसरेसे लड़नेके लिये भी तैय्यार हो गये थे । www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir deadm जयन्त - क्या यह सच बात है ? विन ० - क्या कहूं, महाराज, बुद्धिमानोंने अपने हजार काम छोड़ इस काममें दखल देना बुद्धिमानी मान ली है । जयन्त–पर जो लड़के बिगड़ते चले हैं वे भी इससे कुछ लाभ उठाते हैं ? विन० नयाँ, हाँ, महाराज, पूरी तरहसे लाभ उठाते हैं । जयन्त - बड़ा आश्चर्य है ! या इसमें आश्चर्यकी बात ही क्या है ? मेरे पिताजी जब जीते थे तब मेरे चाचाको लोग बड़ी घृणाकी दृष्टिसे देखते थे; पर अब, -जब वे राजगद्दी पर हैं तब उन्हीकी मामूली से मामूली तस्वीर दस दस बीस बीस, पचास पचास और सौ सौ रुपये में बिकती है; और लोग बड़ी खुशीसे खरीदते हैं । परन्तु यह बात अस्वाभाविक है । " ( वाद्योंकी आवाज सुनाई पड़ती है | ) ● -शायद, नाटकवाले आ गए । जयन्त-सजनो ! आप लोगोंने यहां आनेका कष्ट उठाया, इस लिये आपके धन्यावद हैं धन्यवाद देना, और नमस्कार करना या हाथ मिलाना लौकिकी रीति है । पर यह मैं कहे देता हूं कि मेरे चाचा और माने बड़ी भयङ्कर भूल की है। विन० - किस बातमें, महाराज १ ? For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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