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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ है कि, वह धन भी खूब कमाती थी । फिर वह नगर नगर क्यों भटकती है ? नय - मैं समझता हूं कि इधर नाटकोंमें जो नया ढंग निकल पड़ा है इससे उसे बाहर जाना पड़ा हो । दृश्य २ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । जयन्त — यहां उसकी बड़ी प्रसिद्धी है ; और सुना जयन्त - क्या उसकी अब भी वही इब्बत है ? तमाशबीनोंकी वैसी ही भीड़ होती है ? नय - नहीं महाराज, पहिली बात तो अब नहीं रही । जयन्त - क्यों, ऐसा क्यों हुआ ? क्या मण्डली मुर्चा खा गई ? नय— नहीं, नहीं, बात यह है कि आजकल नाटकों में लड़कों की ही बात और इज्ज़त है । रंगमँचपर ज़रा ज़रासे लड़के आते हैं; नाचते हैं, गाते हैं, मटकते हैं; उसीमें लोग मस्त रहते हैं । ताल सुरका ख्याल कौन करता है ! मतलब कौन देखता है ? अभिनय कौन समझता है ? आँखोंको तो ये ही बने ठने लड़के अच्छे लगते हैं । इन्हीं चलती है । सब कंपनियोंका यही हाल है ! जयन्त - क्या कहा, ये जरा जरासे लड़के हैं ? इन्हें सम्भालता कौन है ? इनकी जीविका कैसे चलती है ? घर छोड़ ये नाटकोंमें कैसे आ जाते हैं ? और इनकी आवाज़ बिगड़नेपर ये कैसे अपना पेट भरेंगे १ दाढ़ी मोछ निकल आनेपर और चेहरेकी रौनक जानेपर इनका क्या हाल होगा ? लड़कई है तबतक किसी तरह समय बिता रहे हैं । खाने पीनेकी कोई फ़िक्र नहीं । अच्छा खाना मिलता है, अच्छे कपड़े मिलते हैं, शौकीनीका हौसला पूरा करते हैं; और रात दिन स्वार्थी, लंपट और नीच लोगोंकी संग सोहबत में रहते हैं । इनकी बड़ी दुर्गति होती है । पीछे बहुत पछताते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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