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दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार। ६९ है। मैंने सुना है कि खूनी मनुष्य जब किसी नाटकमें अपने किये हुए दुष्कर्मोंका नमूना देखता है तो उसका चेहरा फौरन् काला पड़ जाता है ; और अपन अपराधोंको वह तुरंतही कबूल देता है । खूनके ज़बान नहीं होती, तो भी उस समय किसी न किसी विचित्र तरहसे उसे ज़बान फूट निकलती है । खैर, यहां जो नाटक मण्डली आई है उसीसे मैं अपने पिताको हत्याके ऐसा एकाध नाटक चचाके सामने कराऊँगा । और उनके चेहरे में कुछ फेर बदल होता है या नहीं, यह देखता रहूंगा । बीच बीचमें कलेजेमें चुभने वाली बातें भी उन्हें सुनाऊंगा; और फिर यदि उनके चेहरेपर उदासीके चिन्ह दिखाई पड़ें तो आगे मुझे क्या करना होगा उसका मैंने खूब बिचार कर लिया है ।
संभव है कि जिस भूतको मैंने देखा है वह विघ्नसंतोषी हो । और यह बात तो सब लोग जानते हैं कि, भूत पिशाच एक नहीं अनेक स्वांग ले सकते हैं । और यह भी सम्भव है कि जिस भूतको मैंने देखा है वह मुझे दुर्बल और दुःखी देख और भी कष्ट देनेका बिचार करता हो । इस लिये भूत प्रेतोंकी बातोंमें विश्वास करना अच्छा नहीं ; इससे भी और अच्छे प्रमाणको आवश्यकता है । चाचा जीके हृदय की थाह लेनेके लिये उनके सामने खेल कराना, यही उपाय ठीक है । ( जाता है।)
दूसरा अंक समाप्त ।
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