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जयन्त
[ अंक २
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नय - इसके लिये छोटे बड़े दोनों नट दोषी हैं । कई दिन इस प्रश्नकी मीमांसा होती रही । यहांतक कि एक बार नाटकवालों में दो दल बन गए ; और वे एक दूसरेसे लड़नेके लिये भी तैय्यार हो गये थे ।
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जयन्त - क्या यह सच बात है ?
विन ० - क्या कहूं, महाराज, बुद्धिमानोंने अपने हजार काम छोड़ इस काममें दखल देना बुद्धिमानी मान ली है ।
जयन्त–पर जो लड़के बिगड़ते चले हैं वे भी इससे कुछ लाभ उठाते हैं ?
विन०
नयाँ, हाँ, महाराज, पूरी तरहसे लाभ उठाते हैं ।
जयन्त - बड़ा आश्चर्य है ! या इसमें आश्चर्यकी बात ही क्या है ? मेरे पिताजी जब जीते थे तब मेरे चाचाको लोग बड़ी घृणाकी दृष्टिसे देखते थे; पर अब, -जब वे राजगद्दी पर हैं तब उन्हीकी मामूली से मामूली तस्वीर दस दस बीस बीस, पचास पचास और सौ सौ रुपये में बिकती है; और लोग बड़ी खुशीसे खरीदते हैं । परन्तु यह बात अस्वाभाविक है ।
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( वाद्योंकी आवाज सुनाई पड़ती है | )
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-शायद, नाटकवाले आ गए ।
जयन्त-सजनो ! आप लोगोंने यहां आनेका कष्ट उठाया, इस लिये आपके धन्यावद हैं धन्यवाद देना, और नमस्कार करना या हाथ मिलाना लौकिकी रीति है । पर यह मैं कहे देता हूं कि मेरे चाचा और माने बड़ी भयङ्कर भूल की है। विन० - किस बातमें, महाराज १
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