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जयन्त
[ अंक २ ___ जयन्त-अगर सबका यथा योग्य सम्मान किया जाय तो कोड़ेकी मारसे फिर कौन बचेगा ? अपनी इज्ज़त और ओहदेको देखकर इनकी खातिर कीजिये ; योग्यता देखनेकी ज़रूरत नहीं । उनकी योग्यता नितनी ही कम होगी उतनी ही अधिक आपकी उदारता प्रकट होगी। अच्छा, इन्हें ले जाइये।
धू०-आइये, चलिये, महाशयो !
जयन्त-मित्रो ! उनके साथ जाओ। हम लोग कल तुम्हारा खेल अवश्य देखेंगे।
(पहिले नटके सिवा और सब धूर्जटिके साथ जाते हैं । )
कहो, मेरे मित्र ! क्या तुमलोग मातंगकी हत्याका नाटक खेल सकते हो?
प.नट-क्यों नहीं; महाराज ? अवश्य खेल सकते हैं।
जयन्त-ठीक है । कल रातको वही नाटक होगा । ज़रूरत पड़नेपर, उस नाटकमें दस बीस पंक्तियोंका एक भाषण अगर जोड़ दिया जाय तो क्या तुम लोग उसे कण्ठ नहीं कर सकते ? प०नट-क्यों नहीं, ? अच्छी तरह कर सकते हैं।
जयन्त-ठीक है । तो अब तुम भी उनके साथ जाओ। पर,ए, सुनो, उनसे हँसी मसखरी न करना । ( नट जाता है । ) मित्रो ! अब रातको मैं तुम लोगोंसे मिलंगा । तुम लोगोंके आनेसे मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।
नय-महाराज ! अब हम लोग भी आशा चाहते हैं ।
जयन्य-हां हां, तुम लोग जासकते हो । ईश्वर तुम्हारा भला करे ! (नय और विनय जाते हैं ।)
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