Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दृश्य २ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । ६५ प० नट – “रोदनसे सब गगन कँपाती बिलखाती हा हा करती" - क्या ? ' रोदनसे सब गगन कँपाती बिलखाती हा हा -- जयन्त www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करती ' ? धू० -- वाह जी वाह ! गगन कँपाती ! बिलखाती ! हाहा करती ! वाह ! बहुत अच्छा ! क्याही मधुर शब्द हैं ! प० नट केश हुए सब श्वेत धनुषसी झुकी हुई थी कटि जिसकी । रनभूमीकी ओर चली ले यष्टि हाथ जननी उसकी ॥ वृद्धादशा कठिन होती है तिसपर पतिका शोक महा । पैर नहीं उठता था मूर्छित हो जाती थी तुरत वहां ॥ रोदनसे सब गगन कँपाती बिलखाती हाहा करती । पवन विताडित जीर्णलतासी रुन पहुंची गिरती पड़ती ॥ पतिपातीको देख अश्रुजल लेकर ज्यों देती थी ज्ञाप । निश्चेतन हो गिरी भूमिपर प्राणपखेरु उड गए भाप ॥ धू० – देखिये, देखिये, महाराज ! उसका चेहरा कैसा उतर गया ! और आँखें भी कैसी डबडबा आई हैं । भाई, बस करो, बस करो । जयन्त - - वाह ! बहुत ठीक । बाकी भी मैं तुमसे बहुत जल्द सुन लूंगा। क्यों महाशय ! इनका सब प्रबन्ध करना आपके तरफ़ रहा । सुना ? इनकी अच्छी तरह खातिर होनी चाहिये । क्योंकि ये नाटकवाले एक तरहके मुनादिये होते हैं । आपके मरनेके बाद आपके कंके पत्थरपर यदि कुछ भला बुरा लिख दिया जाय तो कोई चिन्ता नहीं; पर जीवित रहते इन लोगों के मुँह अपनी बदनामी न कराइये । धू ० - महाराज ! इनका यथा योग्य सम्मान किया जायगा । For Private And Personal Use Only

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