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दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार ।
रानी-महाशयो, तुम्हारी इस नम्रताको देख मैं भी तुम्हें धन्यवाद देती हूं; और साथ ही साथ प्रार्थना भी करती हूं कि तुम लोग अभी जाकर मेरे जयन्तसे मिल लो। ( नौकरोंकी ओर देखकर) जाओ, तुममेंसे कोई इन महाशयोंको जयन्तके पास ले जाओ।
विन-परमात्मा करे हमारा यहां आना और हमारे उपाय जयन्तके लिये सुखकर तथा उसके सुधारनेमें सफल हों !
रानी-तथास्तु ! (नय, विनय और कुछ नौकर चले जाते हैं।)
धूर्जीट प्रवेश करता है। धू.-महाराज ! शाकद्वीप गये हुए वकील कुशलपूर्वक लौट आए हैं।
रा०-सचमुच, आप सदा सुवार्ता ही सुनाते हैं ।
धूल-मैं ? महाराज, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि राजसेवा और ईश्वरसेवामें मैं कुछ भी भेद नहीं समझता । जिस प्रकार. आत्माको ईश्वरकी सेवामें लगाना मैं अपना कर्तव्य कर्म समझता हूँ उसी प्रकार शरीरको राजसेवामें लगाना भी अपना मुख्य कर्तव्य मानता हूँ । महाराज जानते ही हैं कि कैसी ही गुप्त बात ढूंढ निकालनेमें इस बुढेकी बुद्धि कैसी निपुण है । अस्तु, अब महाराजको एक और भी सुर्वाता सुनानी है । वह यह है कि जयन्तके पागल. पनका कारण इस सेवकने ढूंढ निकाला है ।
रा०-कहिये, जल्दी कहिये,-क्या कारण है ? उसे सुननेके लिये मैं बहुत उतावला हो रहा हूं।
धू०-महाराज ! पहिले वकीलोंको बुलवाकर उनकी बातें सुन
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