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जयन्त
[ अंक २
"
उसका मन, उसकी शकल उसकी सूरत सब कुछ बदल गया है । इसका कारण जाननेके लिये मैंने बहुत माथापच्ची की ; पर उसके पिताकी मृत्युके सिवा इसका और कोई कारण मेरी समझमें नहीं आता । तुम दोनों बचपन से उसके साथ रहे हो और उसके स्वभावको अच्छी तरह जानते भी हो; इसलिये तुमसे प्रार्थना है कि कुछ दिनोंतक तुम दोनों इसी राज-भवनमें आकर रहो । सम्भव है कि तुम्हारे संग सोहबतसे उसका दिल बहले और उसके मनकी अस्थिरताका कारण भी मालूम करनेका तुम्हें मौक़ा मिले। क्योंकि उसके दु:खका कारण मालूम हो जाने से हमलोग उसको कुछ दवा भी कर सकेंगे ।
रानी - देखो, महाशयो ! वह बार बार तुम दोनोंकी याद किया करता है ; और तुम्हारे बारेमें उसने मुझसे बहुत कुछ कहा भी है ; जिससे मेरा विश्वास हो गया है कि इस पृथ्वीपर ऐसा और कोई मनुष्य नहीं है जो उसे तुम दोनोंसे अधिक प्रिय हो । इसलिये मेरी यह बिनती है कि हमपर दया करके तुम दोनों कुछ दिनोंके लिये इसी · राज-भवनमें आकर हमारे साथ रहो ; और जयन्तके सुधरने की हमारी आशा पूरी करो । तुम्हारी इस दयाके बदले तुम्हारा उचित सम्मान किया जायगा ।
नय०
- महाराज और रानी साहब ! हम लोग तो आपके चरणोंके दास हैं । आपकी आज्ञाको हम कब टाल सकते हैं ? आपको बिनती करना छोड़ आज्ञा करनी चाहिये ।
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विन० - रानी साहब ! आपके चरणोंकी सेवा करनेके लिये हम लोग जी जानसे तैयार हैं।
रा० - महाशयो, इस स्वामि-भक्तिके लिये तुम्हें अनेक धन्यवाद हैं।
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