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दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार। लिये तुम्हें किसीने बुला नहीं भेजा था ? अजी, तुमलोग कहांतक डिया
ओगे ? क्या बात है वह तुम्हारे चेहरेसे झलक रही है; जिसे छिपाना भी तुमसे न बन पड़ा । मैं जानता हूँ तुमलोगोंको मेरी मा और चचाने इधर चले आनेके लिये कह भेजा था । क्यों ?
नय-अच्छा बताइये, किसलिये ? ।
जयन्त-मुझे सिखानेके लिये । पर, प्यारे नय और विनय ! तुमलोग मेरे मित्र हो; तुम्हें मेरे गलेकी सौगन्द है, सच बतलाओ कि मेरे चाचा और माने ही तुम्हें यहाँ बुला भेजा था न ?
नय-(एक ओर विनयसे) कहो, अब क्या कहते हो ?
जयन्त-(स्वगत) अजी, तुमलोग लाख छिपाया करो पर मैंने सब ताड़ लिया है । (प्रकट) प्यारे मित्रो ! यदि तुम मुझे अपना मित्र समझते हो तो सच सच कह दो ।
विन०-महाराज ! हमलोगोंको उन्होंने ही बुला भेजा था ।
जयन्त-ठीक है । अब मैं ही बतला देता हूँ कि उन्होंने तुम्हें किस लिये बुलाया है । और अगर मैं खुदही कह दूंगा तो महाराज
और महारानीने तुमलोगोंपर जो विश्वास किया है उसमें किसी तरह फर्क न आवेगा। इधर कई दिनोंसे मेरी तबियत बिगड़ गई है ; किसी बातमें दिल नहीं लगता । चारों ओर उदासी ही उदासी नजर आती है। न कहीं जानेकी इच्छा होती है और न कहीं बैठनेको जी चाहता है; और तो क्या, वसुन्धरादेवीका यह रम्य निकेतन बलभद्रदेश भी मुझे निर्जन और सूखे जंगलके समान मालूम होता है; दिव्य तारकारत्नोंसे सिंगारा हुआ यह दैदीप्यमान आकाशमण्डल भी मुझे तेजहीन प्रतीत होता है; और यह हवा जो पृथ्वीके ओरसे छोरतक भूमण
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