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जयन्त
[ अंक २ लीजिये । फिर मैं भी अपनी बात कह दूंगा। रा०-अच्छा, आप ही जाकर उनको लिबा लाइये ।
(धूर्जटी जाता है । ) प्रिये ! सुना, अभी वह क्या कह रहा था ? वह कहता था कि मैंनें जयन्तके पागलपनका कारण ढूँढ निकाला है।
रानी-पिताकी मृत्यु और अपना जल्दी २ विवाह कर लेना, इसके सिवा और क्या कारण होगा ?
रा०-अच्छा, देखें, वह क्या कहता है ।
(धूर्जटीके साथ जय और विजय प्रवेश करते हैं।) रा०-मित्रो, आओ, बैठो । कहो, अच्छे तो हो न ! जय, शाकद्वीपसे क्या खबर लाये हो ?
ज०-महाराजकी इच्छानुसार सब काम ठीक हो गया । मेरी पहली ही भेटमें शाकद्वीपके महाराजने अपने भतीजेको लुटेरे जमा करनेसे रोक दिया । वे समझते थे कि उनका भतीजा पोलोमसे युद्ध करनेकी तय्यारीमें लगा है ; परन्तु जब उन्होंने उसके विषयमें खूब जांच कर ली तब उन्हें हमारी बातोपर विश्वास हो गया कि सचमुच वह बलभद्रदेशके विरुद्ध ही उठ खड़े होनेकी तय्यारी कर रहा है। उन्हें इस बातपर बड़ा दुःख हुआ कि उनका भतीजा उनकी बीमारी, बुढ़ौती और दुर्बलताकी वजहसे ये सब कुचालें कर रहा है । उन्होंने फौरन् उसे ऐसा करनेसे मना कर दिया । चचाकी आशा पाते ही युधाजितने हम लोगोंपर चढ़ाई करनेका इरादा एकदम छोड़ दिया; और चचाके सामने सौगन्द खाई कि बलभद्रदेशके विरुद्ध मैं अपने हाथमें शस्त्र कभी न उठाऊँगा । इसपर उसके बुढे चचाको बहुत आनन्द
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