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रव २] बलभद्रदेशका राजकुमार । इन्कार कर दिया था।
धू०-ठीक है । इसीसे वह पागल हो गया है । हाय हाय ! मैंने बड़ी भूल की जो उसे अच्छी तरह नहीं परख लिया और पहिले ही तुमको उसके साथ मिलनेको मना कर दिया । मुझे इस बातका डर था कि वह तुम्हें अपनी मीठी मीठी बातोंके जालमें फँसाकर अन्तमें मुँहके बल न गिरा दे । पर, यह तो और ही कुछ हो गया । धिक्कार है ऐसी शंकाको ! हम जैसे बुढोंसे हर काममें बिना सन्देह किये रहा नहीं जाता । जैसे युवकोंसे विचारपूर्वक काम नहीं होता, वैसे बुड्ढोंसे भी बिना सन्देह किये साहसका काम नहीं होता। खैर, जो हो गया सो हो गया। अब चलो, महाराजके पास चलें; और यह सारी कथा एक बार उनके कानोंतक पहुँचा दें। क्योंकि, अगर यह बात उनसे छिपाई नाय तो सम्भव है कि उनकी नाराज़गीसे आज हम बच जाय; पर फिर कभी अगर यह बात खुल जायगी तो न जाने हमपर कैसी बीतेगी !
(जाते हैं।) दूसरा दृश्य। स्थान-किलेका एक कमरा ।
( राजा, रानी, नय, विनय तथा नौकरचाकरोंका प्रवेश ।)
रा०-प्यारे नय और विनय ! तुमलोगोंने यहां आकर मेरी बहुत दिनोंकी इच्छा पूरी की; यह देख आज मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है । कुछ आवश्यक कार्य के ही लिये तुम्हें यहांसे इतनी जल्दीका बुलावा भेजा गया था । यह तुमने सुना ही होगा की जयन्त की चित्तवृत्तिमें इधर थोड़े दिनोंसे बहुत कुछ फेर बदल हो गया है।
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