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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रव २] बलभद्रदेशका राजकुमार । इन्कार कर दिया था। धू०-ठीक है । इसीसे वह पागल हो गया है । हाय हाय ! मैंने बड़ी भूल की जो उसे अच्छी तरह नहीं परख लिया और पहिले ही तुमको उसके साथ मिलनेको मना कर दिया । मुझे इस बातका डर था कि वह तुम्हें अपनी मीठी मीठी बातोंके जालमें फँसाकर अन्तमें मुँहके बल न गिरा दे । पर, यह तो और ही कुछ हो गया । धिक्कार है ऐसी शंकाको ! हम जैसे बुढोंसे हर काममें बिना सन्देह किये रहा नहीं जाता । जैसे युवकोंसे विचारपूर्वक काम नहीं होता, वैसे बुड्ढोंसे भी बिना सन्देह किये साहसका काम नहीं होता। खैर, जो हो गया सो हो गया। अब चलो, महाराजके पास चलें; और यह सारी कथा एक बार उनके कानोंतक पहुँचा दें। क्योंकि, अगर यह बात उनसे छिपाई नाय तो सम्भव है कि उनकी नाराज़गीसे आज हम बच जाय; पर फिर कभी अगर यह बात खुल जायगी तो न जाने हमपर कैसी बीतेगी ! (जाते हैं।) दूसरा दृश्य। स्थान-किलेका एक कमरा । ( राजा, रानी, नय, विनय तथा नौकरचाकरोंका प्रवेश ।) रा०-प्यारे नय और विनय ! तुमलोगोंने यहां आकर मेरी बहुत दिनोंकी इच्छा पूरी की; यह देख आज मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है । कुछ आवश्यक कार्य के ही लिये तुम्हें यहांसे इतनी जल्दीका बुलावा भेजा गया था । यह तुमने सुना ही होगा की जयन्त की चित्तवृत्तिमें इधर थोड़े दिनोंसे बहुत कुछ फेर बदल हो गया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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