SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ जयन्त था, मानों उसके पीछे कोई भूत लगा हो और उस भूतसे अपनी जान बचाने वह मेरे पास आया हो । धू.-क्योरी कमला; तुम्हारे लिये तो वह पागल नहीं हो गया ? कम-ये सब मैं क्या जाने ? पर, होगा-यह भी हो सकता है । कौन कहे कि यह बात झूठी है ? धू०-उसने कुछ कहा भी था ? कम०-कहना सुनना कैसा ? एकाएक आकर उसने मेरी कलाई पकड़ ली और मुझसे एक हाथ दूर पीछे हट गया; और अपना दूसरा हाथ भीसे लगा मेरी ओर इस तरह निहारने लगा मानों मेरी फोटो ही उतारा चाहता था। बस, इसी तरह मेरी भोर टकटकी लगाए कुछ देरतक खड़ा था । फिर मेरे हाथको एक हलकासा झटका देकर तीन बार सिरसे पैरतक मुझे खूब निहार एक ऐसी लन्त्री साँस ली कि मानों उसके कलेजेमें कोई गहरी चोट लगी हो । फिर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया; और गर्दनको कन्धेपर लटका मेरी ओर देखता हुआ वह दरवाजेके बाहर हो गया। धूल-चलो, मेरे साथ साथ चलो; मैं अभी महाराजके पास जाता हूं । इसीका नाम है 'प्रेमातिरेक' । कामातुर मनुष्योंको इस कामवासनाके पीछे न जाने कौन कौन दुःख उठाने पड़ते हैं ! मनुप्यको जर्जर करने वाले जो छः शत्रु माने गये हैं उनमें अत्यन्त भयकर शत्रु यही 'काम' है । हा ! मुझे उसके लिये बहुत दुःख हो रहा है। क्योंरी ! तुमने उसे कोई कड़ी बात तो नहीं कही ! कम०-नहीं, पिताजी, मैं तो कुछ भी नहीं बोली। पर हां, आपकी आज्ञानुसार उसकी चिठियाँ मैंने अवश्य लौटा दी थीं; और मिलनेसे भी For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy