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दृश्य १ ]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
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लो; फिर देखा जायगा । मेरी बातोंका मतलब समझेते हो न ! नहीं
तो फिर समझ लो ।
जम्बू धूर्ज
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नहीं नहीं, सरकार, मैं खूब समझता हूँ ।
-अच्छा, जाओ । परमात्मा तुम्हारी रक्षा करेगा
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जम्बू ० जो आज्ञा ।
धूर्ज० – एक बात और सुन लो । मौका देखकर काम करना ।
जम्बू ० - हाँ, हुजूर, ऐसा ही करूँगा ।
धूर्ज ० - उसके गाने बजाने में बाधा मत डालना |
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जम्बू ० - जो आज्ञा ।
धूर्ज० - अच्छा,
अब जाओ ।
( जम्बुक जाता है । कमला प्रवेश करती है । ) धू० - कहो, कमला, क्या खबर है ?
कमला - ( लम्बी सांस लेकर ) पिताजी ! मुझे तो बढ़ा डर लगता है !
घ.
- डर लगता है ? किसका डर लगता है !
कम०- - पिताजी, जब मैं अपने कमरे में बैठकर कसीदा काढ़ रहा थी तब जयन्त ऐसे विचित्र ढंगसे वहां आकर मेरे सामने खड़ा हो गया कि – बापरे बाप ! मैं कुछ कही नहीं सकती । न तो उसके कोटके बटन लगे थे; न माथेपर टोपी थी; और न पायता में पट्टी ही लगी थी । पायताने खिसक खिसक कर बेड़ी जैसे ठेहुनीके बिल्कुल पास चले आये थे; और कीचड़से भर गये थे । चेहरेपर सफ़ेदी छा गई थी; और चलते समय दोनों घुटने एक दूसरे से टकराते थे । तात्पर्य, उसने ऐसा दया उत्पन्न करने वाला वेश बनाया
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