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जयन्त
[अंक मनुष्यपर ऐसे ही कुछ छोटे मोटे दुर्गुण लादकर उसका सच्चा सच्चा हाल जान लेनेकी यह एक युक्ति है । जिससे तुम ऐसी बातें करोगे, उसने यदि कोई बुरा काम करते उसे देखा होगा तो वह फौरन् कह बैठेगा,-" महाशय, बाबूसाहब, या लालाजी, या सर्वसाधारणको मम्मानसे पुकारनेका जिस देशमें जैसा रिवाज हो वैसा पुकारकर...
जम्बू:-हां, ठीक है।
धुर्ज०-यह कहेगा,......हां, क्या कहेगा ? मैं अभी क्या कह रहा था ? देखोजी,...भूलता हूँ ; मैं कौनसी बात कह रहा था ? अपनी बातोंका सिलासला कहां टा ?
जम्बू०-"वह फौरन् कह बैठेगा, महाशय, बाबूसाहब, इत्यादि" यहांसे ।
धूर्ज.-' वह फौरन् कह बैठेगा', यहींसे न ? हाँ, टीक है । वह यह कहेगा:-' हां हां, उस मनुष्यको तो मैं जानता हूं । मैंने उसे कल या परसों कहीं देखा था । ' अगर इसपर तुम कहोगे:--'फिर फिर ? ' तो वह यही जवाब देखा, 'फिर फिर क्या ?-शराब पीकर जएके फड़पर वह जुवा खेल रहा था; और वहीं गन्दगीमें इधर उधर लोट भी रहा था।' समझते हो न ? चारा डालकर हाथीको पकड़नेकी ये सब युक्तियाँ हैं । थोड़ासा झूठ बोलकर दूसरेके पेटकी सारी थाह ले लेनेका यह एक ढंग है । हम लोगोंके सब काम प्रायः इन्ही युक्तियोंसे होते हैं । अनुभवके बिना मनुष्य चतुर नहीं होता । याद रक्खो, बिना काँटेके काँटा नहीं निकलता और बिना ऐठे ऐंठन नहीं छूटती । अस्तु, मेरे इस व्याख्यान और उपदेशसे लाभ उठा• बार कमसे कम मेरे पुत्र चन्द्रसेनकी चालचलनका तो पता लगा
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