SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार । रानी-महाशयो, तुम्हारी इस नम्रताको देख मैं भी तुम्हें धन्यवाद देती हूं; और साथ ही साथ प्रार्थना भी करती हूं कि तुम लोग अभी जाकर मेरे जयन्तसे मिल लो। ( नौकरोंकी ओर देखकर) जाओ, तुममेंसे कोई इन महाशयोंको जयन्तके पास ले जाओ। विन-परमात्मा करे हमारा यहां आना और हमारे उपाय जयन्तके लिये सुखकर तथा उसके सुधारनेमें सफल हों ! रानी-तथास्तु ! (नय, विनय और कुछ नौकर चले जाते हैं।) धूर्जीट प्रवेश करता है। धू.-महाराज ! शाकद्वीप गये हुए वकील कुशलपूर्वक लौट आए हैं। रा०-सचमुच, आप सदा सुवार्ता ही सुनाते हैं । धूल-मैं ? महाराज, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि राजसेवा और ईश्वरसेवामें मैं कुछ भी भेद नहीं समझता । जिस प्रकार. आत्माको ईश्वरकी सेवामें लगाना मैं अपना कर्तव्य कर्म समझता हूँ उसी प्रकार शरीरको राजसेवामें लगाना भी अपना मुख्य कर्तव्य मानता हूँ । महाराज जानते ही हैं कि कैसी ही गुप्त बात ढूंढ निकालनेमें इस बुढेकी बुद्धि कैसी निपुण है । अस्तु, अब महाराजको एक और भी सुर्वाता सुनानी है । वह यह है कि जयन्तके पागल. पनका कारण इस सेवकने ढूंढ निकाला है । रा०-कहिये, जल्दी कहिये,-क्या कारण है ? उसे सुननेके लिये मैं बहुत उतावला हो रहा हूं। धू०-महाराज ! पहिले वकीलोंको बुलवाकर उनकी बातें सुन For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy