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जयन्त
[अंक १ होता है । पर बाहन, जब कभी सुभिता हो, चिट्ठी भेजनेमें आलस भ करना।
कमला-क्या इसमें भी तुम्हें कुछ सन्देह है ! .. चन्द्रसेन-बहिन, एक बात तुमसे कह रखता हूँ। तुम यह समझती हो कि जयन्त तुमपर बहुत प्रेम करता है; पर यह तुम्हारा निरा भूम है । युवकोंका युवतियों पर प्रेम दिखाना स्वाभाविक है; पर याद रखो, यह प्रेम स्थिर नहीं रहता । जैसे वसन्त ऋतुके आते ही वृक्षोंमें कोमल कोमल पत्तियाँ निकलकर अपनी सुन्दरतासे जीवमात्रको प्रसन्न करती हैं, परन्तु वह सुन्दरता केवल एक या दो मास तक रहती है; वैसेही युवावस्थामें पुरुषों में जहाँ कामवासना उसन हुई वहाँ जिस तरुण तथा सुन्दर स्त्रीको वे देखते हैं उसीको अपनी प्राणप्यारी समझते हैं । इस अवस्थामें उनका प्रेम अत्यन्त मधुर होता है; पर स्थिर नहीं रहता। इसलिये तुमसे कहता हूँ कि ऐसे क्षणिक प्रेमगन्धपर मोहित न हो जाना।
कमला-बस, इतना ही न !
चन्द्र०-अब उसके प्रेमका विचार भी मत करो; क्योंकि मनुज्यका मन स्थिर नहीं रहता । जैसे २ उसके अनुभव बढ़ते जाते हैं वैसे वैसे उसके मनके भाव भी बदलते जाते हैं । हो सकता है कि वह तुमपर प्रेम करता हो; और यह भी सम्भव है कि उस प्रेममें किसी प्रकारका छलकपट भी न हो; परन्तु विचार करनेकी बात है कि वह कोई साधारण मनुष्य तो है नहीं जो अपनी ही इच्छासे कोई काम कर बैठे । वह एक दिन इस देशका राजा होगा; और उसीपर इस देशका मंगल निर्भर है; इसलिये उसकी इच्छा भी
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