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जयन्त
[अंक १ जयन्त-सचमुच, मेरी तलवारकी सौगन्द, तुमलागे किसीसे नहीं कहोगे ?
भूत-( नीचेसे ) सौगन्द खाओ।
जयन्त-आः हा ! भूत, भूत ! २ पिशाच, तू यहां भी आ गया ? मित्रो, देखो, सुनो, इस मुंहारमेंसे उसी भूतकी आवाज़ आ रही है, तो फिर खाओ जल्दी सौगन्द ।
विशाल महाराज, आपही कह दीजिये, किसकी सौगन्द खायें।
जयन्त-मेरी तलवारको सौगन्द खाकर कहो कि हमलोग आजकी देखी बात किससे न कहेंगे ।
भूत-(नीचेसे ) सौगन्द खाओ ।
जयन्त-अरे ! क्या तू यहां, वहां, हर जगह रहता है ? हमलोग अब यह स्थान ही बदल देंगे । आओ महाशयो, इधर चले आओ । मेरी तलवारपर हाथ रखकर सौगन्द खाओ कि हमलोग यह बाते किसीपर भी प्रकट नहीं करेंगे ।
भूत-(नीचेसे ) सौगन्द खाओ।
जयन्त०-रे पिशाच ! बिल खोदनेमें तो तूने छछंदरपर मात कर दी । हमारे यहां आते ही तू भी नीचे नीचे यहां आ पहुँचा । आओ, मित्रो, एक बार और स्थान बदल डालें। विशा०-कैसा चमत्कार है !
जयन्त -इसी लिये कहता हूं कि इस चमत्कार दिखानेवाले पिशाचका स्वागत करो। विशालाक्ष, स्वर्ग और पृथ्वीमें इतनी विचित्र विचित्र वस्तुएँ हैं जिनका वर्णन तुम्हारे दर्शन शास्त्रमें ढूंढे भी न मिलेगा। मित्र, आजतक सुमनै मेरी जैसी सहायता की है वैसी ही
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