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जयन्त-.
[मंकर
दूसरा अंक।
पहिला दृश्य । स्थान-धूर्जटिके घरका एक कमरा ।
जटि और जम्बूक प्रवेश करते हैं। धूर्ज०-लो, यह रुपया और यह पत्र उसे दे देना । जम्बू०-जो भाज्ञा ।
धूर्ज०-जम्बूक, उससे भेंट करनेके पहिले यदि उसकी चाल. बलनका तुम पता लगा सको तो बहुत अच्छा होगा।
जम्बू०-सरकार, यह तो मैंने पहिले ही सोच लिया था ।
धूर्ज०-हां, तुमने बहुत ठीक सोचा था । परन्तु, पहिले इस बातका पता लगा लेना कि यहांके कौन कौन लोग वहां रहते हैं ; कैसे रहते हैं ; कहाँ रहते हैं; क्या काम करते हैं ; किस समाजमें बैठते हैं; तथा कितना खर्च करते हैं । इस ऊपरी पूछताछसे जब उसके नामका पता लग जाय तब धीरे धीरे उसका सारा हाल जाननेकी चेष्टा करना । ऐसे अवसरपर लोगोंसे यह कहना चाहिये कि, “ हां, हां, मैंने उसका नाम सुना है । उसका मुझे इतना तो परिचय नहीं है, किन्तु उसके पिताको और मित्रोंको मैं खूब पहिचानता हूं; और उसे भी कुछ कुछ जानता हूँ।" क्यों ? मेरी बातको समझते हो न ?
नम्बू०---हां, खूब समझता हूँ। धूर्ज-इतना ही कहना, “ कुछ कुछ जानता हूँ-अच्छी
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