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जयन्त
[अंक १ धूर्ज०-निर्मल प्रेम ! चल हट, मूर्ख !
कमला-उसने परमात्माकी सौगन्द खाकर अपने सच्चे प्रेमके विषयमें मेरे विश्वासको और भी दृढ़ किया है।
धूर्ज०-अरी, यह सच्चा प्रेम नहीं है-तुम जैसी नादान लड़कियोंको फँसानेका जाल है । जब मनुष्यके मनमें कामवासना प्रबल हो उठती है, तब वह चाहे जिस स्त्रीपर प्रेम करने लगता है ; उससे मीठी मीठी बातें करता है; और अपने प्रेमका विश्वास दिलानेके लिये सौगन्द खानेमें भी संकोच नहीं करता । परन्तु कमले, इन मीठी मीठी बातोंमें रत्तिभर भी सचाई नहीं होती ; इस लिये उसकी बातोंपर बिल्कुल विश्वास न करो । अवसे उसके सामने बहुत आया जाया भी मत करो । अपनी मान-मर्यादाका विचार छोड़ जब तब उससे मिलना मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं है । याद रक्खो, जयन्त अभी अज्ञान बालक है । आगे चलकर उसके विचार बदल सकते हैं। दूसरी बात यह है कि वह है पुरुष, और तुम हो स्त्री। और इस विषयमें स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषोंको अधिक स्वतन्त्रता होती है; इसलिये उसे तो कोई कुछ भी नहीं कहेगा--तुम्हारी नामधराई होगी। तात्पर्य, यह असली प्रेम नहींप्रेमका मुलम्मा है । कुछ दिनों बाद इसकी वही गति होगी जो सोनेके मुलम्मेकी हुआ करती है । इसपर भी यदि तुम उसपर विश्वास करोगी तो तुम्हारो दुर्गति हुए बिना न रहेगी । बस, मैं तुमसे साफ़ साफ़ कह देता हूँ कि अबसे तुम्हें ऐसा मौका ही न मिलने दूंगा कि तुम जयन्तसे मिल सको। देखमा, खवरदार ! फिर ऐसा काम न करना ।
कमला-आपकी आज्ञाके विरुद्ध मैं कोई काम न करूँगी ।
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