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दृश्य ४]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
चौथा दृश्य । स्थान-किलेके आगेवाला मैदान ।
जयन्त, विशालाक्ष और वीरसेन प्रवेश करते हैं ।
जयन्त-ओफ ! कैसी सर्दी है ! इस समय हवा क्या चल रही है मानों आकाशते तीर बरस रहे हैं !
विशा०-सचमुच, हवा तो बहुत तेज़ चल रही है ! ऐसी हवासे पेड़की पत्ती पत्ती झड़ जाना सम्भव है ।
जयन्त-अब समय क्या होगा ?
विशा०—मैं समझता हूँ कि बारह बजनेमें अभी कुछ कसर होगी।
बीर०-नहीं नहीं, बारह बज गए ।
बिशा०-सच, बारह बज गए ? मैंने नहीं सुना । तव तो उस भूतके आनेका समय हो गया।
(पदेंमें वायों और तोपोंकी आवाज़ होती है।) विशा०-महाराज, यह सब क्या हो रहा है ?
जयन्त-अजी, आज मेरे चचाकी दावत उड़ रही है; उसीकी यह सारी धूमधाम है । न जाने आज कितने ही पोप खाली होंगे । उधर वे शराबकी एक एक घुट ढकोसते जाते हैं; और इधर उसीके उपलक्ष्यमें वाद्योंकी ध्वनिसे उनका विजयघोष हो रहा है।
विशा.----महाराज, क्या इस देशकी यही प्रथा है !
जयन्त-प्रथा ! हः हः, हो सकती है । मैं यहींका रहनेवाला हूँ; और यहाँकी प्रायः सभी रीतिरस्मोंसे परिचित भी हूँ ; पर आजतक
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