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रहा नहीं जाता सन्देहसे व्याकुळ आपके
दृश्य ४] बलभद्रदेशका राजकुमार । पातालसे ऊपर आया हुआ यमदूत हो; तेरे विचार सुविचार हों, या कुविचार ; तूने ऐसा विचित्र वेश धारण किया है कि तुझसे बिना कुछ प्रश्नोत्तर किये मुझसे रहा नहीं जाता । तुझे मैं अपने पिताके नामसे पुकारता हूँ उसका उत्तर दे; और मेरे सन्देहसे व्याकुल हृदयको फटने नं दे । राजन् ! बलभद्रके स्वामिन् ! मेरे पिताजी ! आपके प्राण निकलनेपर आपकी हड्डियाँ शास्त्रोक्तविधिके अनुसार समाधिमें गड़ी रहनेपर भी उसपरकी प्रचण्ड शिलाको हटाकर आपके बाहर निकल आनेका क्या कारण है ? एकबार इस मृत्युलोकको छोड़कर फिर इस पृथ्वीपर सिपाहियाने बानेमें आप क्यों घूम रहे हैं ? इस आधी रातके समय, मेघाच्छादित चन्द्रमाके धुंधले प्रकाशमें इस मैदानमें आकर रातको आप और भी भयानक क्यों बना रहे हैं ? और मेरे ऐसे अज्ञान मनुष्योंके विचार एक जन्मसे आगे नहीं बढ़ते तो मुझे आप सन्देहमें क्यों डाल रहे हैं ? कहिये, कह दीजिये, इन सब बातोंका क्या कारण है ? मेरी समझमें नहीं आता कि मुझे क्या करना चाहिये ।
(भूत जयन्तको संकेत करता है।) विशा०–देखिये देखिये, अपने साथ चलनेके लिये वह आपको संकेत कर रहा है ; मानों एकान्तमें आपसे कुछ कहा चाहता है ।
वीर०-देखिये महाराज, किस नम्रतासे वह आपको एक ओर बुला रहा है ; पर आप उसके साथ हरगिज़ न जायें ।
विशा०-हाँ हाँ, उसके साथ आप भूलकर भी न जायें ।
जयन्त-अगर वह यहाँ न बोला, तो मैं उसके पीछे पीछे अवश्य जाऊँगा।
विशा.-नहीं महाराज, ऐसा न करिये ।
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