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दृश्य ३] बलभद्रदेशका राजकुमार। ... जयन्त-सचमुच, यदि वह मेरे पिताकी शकल हुई तो चाहे साक्षात् यमराज स्वयं आ कर उसके साथ बोलनेसे मुझे क्यों न रोकें, मैं उससे अवश्य बोलूँगा । अब तुमलोगेसि मेरी केवल यही प्रार्थना है कि यदि यह बात तुम लोगोंने अभीतक किसीपर प्रकट न की हो तो इसे इसीतरह छिपा रक्खो । और आज रातको जो कुछ घटना हो उसे चुपचाप देखलो-समझलो; पर उस विषयमें किसीसे कुछ भी मत कहो । इसके लिये मैं तुम लोगोंका अत्यन्त कृतज्ञ रहूँगा । अच्छा, अब जाओ । आज रातको ग्यारहसे बारह बजेतक मैं तुम लोगोंसे उसी . मैदानमें आकर मिलूंगा।
सब लोग-महाराजकी सेवाके लिये हमलोग सदा तैयार हैं। जयन्त-यह तुमलोगोंकी मुझपर कृपा है । अच्छा, जाओ।
. (जयन्तके सिवा सब जाते हैं।) . जयन्त-सिपाहियाने बानेमें मेरे पिताकी शकल ! ये सब लक्षण अच्छे नहीं हैं। क्या ? इसमें कुछ दगाबाज़ी तो न होगी ? यदि इसी समय रात होती तो क्या ही अच्छा होता ! हृदय ! अधीर मत बन, थोड़ी देरतक और धीरज धर । लाख छिपानपर भी दुष्टोंकी दुष्टता नहीं छिपने पाती।
(जाता है।)
तीसरा दृश्य। स्थान-धूर्जटिके घरका एक कमरा ।
चन्द्रसेन और कमलाका प्रवेश । चन्द्रसेन-मेरा असवाब जहाजपर लद चुका है । अब मैं बिदा
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