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जयन्त
वीर०, भीम० - हाँ, सिर से पैरतक ।
जयन्त - तो फिर तुमलोगोंने उसका चेहरा नहीं देखा ? विशा० – देखा था, महाराज ; उसने चेहरेसे नक़ाब हटा लिया था । जयन्त- - क्या वह क्रुद्ध दिखाई पड़ता था ?
विशा० - क्रुद्धकी अपेक्षा उदास ही अधिक मालूम होता था । जयन्त पीला या लाल ?
विशा नहीं, बहुत पीला ! - बिल्कुल फीका ! ! जयन्त — और क्या तुम्हारी ओर उसने टकटकी लगाई थी ? विशा० - जब तक वह वहाँ थी तब तक हमारी ही ओर देखती थी ।
[ अंक १
जयन्त - यदि मैं भी वहाँ रहता तो बहुत अच्छा होता ।
विशा० - आपको भी बड़ा आश्चर्य होता ।
जयन्त - हाँ हाँ, आश्चर्य तो अवश्य होता । क्या वह वहाँ बहुत देरतक ठहरी थी ?
विशा० - करीब सौकी गिनती गिनने तक ।
वीर०, भीम० - नहीं नहीं, इससे अधिक ।
विशा० - नहीं, जब मैंने देखा था उस समय वह इससे अधिक नहीं ठहरी थी ।
जयन्त -- उसकी दाढ़ी भूरी थी, नहीं ?
विशा० - हाँ, वैसी ही, कुछ काली कुछ सफ़ेद, जैसी आपके पिताजी की थी ।
जयन्त- - आज रातको मैं भी पहरेपर रहूँगा; कदाचित् आज फिर वह आवे |
विशा० – मैं निश्चयपूर्वक कहता हूँ कि वह अवश्य आवेगी ।
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