SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૮ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir wololital जयन्त वीर०, भीम० - हाँ, सिर से पैरतक । जयन्त - तो फिर तुमलोगोंने उसका चेहरा नहीं देखा ? विशा० – देखा था, महाराज ; उसने चेहरेसे नक़ाब हटा लिया था । जयन्त- - क्या वह क्रुद्ध दिखाई पड़ता था ? विशा० - क्रुद्धकी अपेक्षा उदास ही अधिक मालूम होता था । जयन्त पीला या लाल ? विशा नहीं, बहुत पीला ! - बिल्कुल फीका ! ! जयन्त — और क्या तुम्हारी ओर उसने टकटकी लगाई थी ? विशा० - जब तक वह वहाँ थी तब तक हमारी ही ओर देखती थी । [ अंक १ जयन्त - यदि मैं भी वहाँ रहता तो बहुत अच्छा होता । विशा० - आपको भी बड़ा आश्चर्य होता । जयन्त - हाँ हाँ, आश्चर्य तो अवश्य होता । क्या वह वहाँ बहुत देरतक ठहरी थी ? विशा० - करीब सौकी गिनती गिनने तक । वीर०, भीम० - नहीं नहीं, इससे अधिक । विशा० - नहीं, जब मैंने देखा था उस समय वह इससे अधिक नहीं ठहरी थी । जयन्त -- उसकी दाढ़ी भूरी थी, नहीं ? विशा० - हाँ, वैसी ही, कुछ काली कुछ सफ़ेद, जैसी आपके पिताजी की थी । जयन्त- - आज रातको मैं भी पहरेपर रहूँगा; कदाचित् आज फिर वह आवे | विशा० – मैं निश्चयपूर्वक कहता हूँ कि वह अवश्य आवेगी । For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy